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शुक्रवार, 2 अप्रैल 2021

कब से शुरू हैं चैत्र नवरात्रि ? चैत्र नवरात्रि 2021 शुभ मुहूर्त ,महत्व और व्रत विधि

कब से शुरू हैं चैत्र नवरात्रि ? चैत्र नवरात्रि 2021 शुभ मुहूर्त ,महत्व और व्रत विधि






नवरात्रि हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। नवरात्रि को पूरे देश में धूमधाम के साथ मनाया जाता है। मां दुर्गा की उपासना के नौ दिन भक्तों के लिए बेहद खास होते हैं। इन दिनों में मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। कई भक्त नवरात्रि के नौ दिन व्रत रखते हैं तो कई पहला और आखिरी रखकर मां दुर्गा की उपासना करते हैं। मान्यता है कि नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा की विधि-विधान से पूजा करने से उनता आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस साल चैत्र नवरात्रि 13 अप्रैल से शुरू होकर 22 अप्रैल तक रहेंगे।

इस बार क्या होगी मां की सवारी-

इस साल चैत्र नवरात्रि मंगलवार के दिन से शुरु हो रहे हैं। इसलिए मां की सवारी अश्व यानी घोड़ा मानी जाएगी। शास्त्रों में मां दुर्गा का अश्व पर आना गंभीर माना जाता है। भागवत पुराण के अनुसार, नवरात्रि पर मां दुर्गा जब घोड़े की सवारी करते हुए आती हैं तो इसका असर प्रकृति, देश आदि पर देखने को मिलता है। 


घटस्थापना का शुभ मुहूर्त-

दिन- मंगलवार
तिथि- 13 अप्रैल 2021
शुभ मुहूर्त- सुबह 05 बजकर 28 मिनट से सुबह 10 बजकर 14 मिनट तक।
अवधि- 04 घंटे 15 मिनट
घटस्थापना का दूसरा शुभ मुहूर्त- सुबह 11 बजकर 56 मिनट से दोपहर 12 बजकर 47 मिनट तक।


नवरात्रि घटस्थापना पूजा विधि-

-सबसे मिट्टी को चौड़े मुंह वाले बर्तन में रखें और उसमें सप्तधान्य बोएं।
-अब उसके ऊपर कलश में जल भरें और उसके ऊपरी भाग (गर्दन) में कलावा बांधें।
-आम या अशोक के पत्तों को कलश के ऊपर रखें।
-नारियल में कलावा लपेटे।
-उसके बाद नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर कलश के ऊपर और पत्तों के मध्य रखें।
-घटस्थापना पूरी होने के पश्चात् मां दुर्गा का आह्वान करते हैं।



बुधवार, 20 जनवरी 2021

जानें बसंत पंचमी 2021 तिथि और सरस्वती पूजा का शुभ मुहूर्त

 जानें बसंत पंचमी 2021 तिथि और सरस्वती पूजा का शुभ मुहूर्त




पंचांग के अनुसार बसंत पंचमी का पर्व फरवरी माह में पड़ रहा है. बसंत पंचमी का संबंध ज्ञान और शिक्षा से है. हिंदू धर्म में सरस्वती को ज्ञान की देवी माना गया है. बसंत पंचमी का पर्व सरस्वती माता को सर्मिर्पत है. इस दिन शुभ मुहूर्त में सरस्वती पूजा करने से ज्ञान में वृद्धि होती है. शिक्षा और संगीत के क्षेत्र से जुड़े लोग इस पर्व का वर्षभर इंतजार करते हैं.

बसंत पंचमी का पर्व बेहद महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है. बसंत पंचमी पर ज्ञान की देवी मां सरस्वती की पूजा की जाती है. इस वर्ष बसंत पंचमी का पर्व कब है? जानते हैं.


बसंत पंचमी कब है?
पंचांग के अनुसार बसंत पंचमी का त्योहार इस वर्ष 16 फरवरी 2021 को मनाया जाएगा. इस दिन माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि है. इस तिथि को बसंत पंचमी के नाम जाना जाता है.


बसंत पंचमी का महत्व
पौराणिक शास्त्रों के अनुसार बसंत पंचमी से ग्रीष्म (गर्मी) ऋतु के आगमन का आरंभ होता है. बसंत पंचमी से सर्दी के जाने का क्रम आरंभ हो जाता है. इस दिन सर्दी कम होने लगती है. बसंत के मौसम में प्रकृति नए रंग में नजर आने लगती है. फसल, पौधों और वृक्षों पर नए पत्ते, बाली और फूल खिलने लगते हैं. वातावरण को देखकर आनंद का भाव मन में आने लगता है. कवि, संगीत प्रेमी और लेखकों को यह पर्व बहुत प्रिय है.


बसंत पंचमी को अबूझ मुहूर्त भी कहते हैं
पंचांग के अनुसार बसंत पंचमी पर अबूझ मुहूर्त का योग भी बनता है. इस दिन शुभ कार्य करने के लिए किसी मुहूर्त को देखने की जरूरत नहीं पड़ती है. इस दिन को विद्या आरंभ करने के लिए भी उत्तम माना गया है.


बसंत पंचमी मुहूर्त
पंचांग के अनुसार 16 फरवरी को सुबह 03 बजकर 36 मिनट पर पंचमी तिथि आरंभ होगी. बसंत पंचमी का समापन 17 फरवरी को सुबह 5 बजकर 46 मिनट पर होगा.


बसंत पंचमी पूजा विधि
इस दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है. बसंत पंचमी के दिन सुबह सूर्य निकलने से पहले स्नान करना चाहिए और स्वच्छ वस्त्र धारण करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए. इस दिन विधि पूर्वक मां सरस्वती की पूजा करनी चाहिए. बसंत पंचमी के दिन पीले रंग के वस्त्र धारण करना शुभ माना गया है.


सरस्वती पूजा मंत्र
सरस्वती नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणी, विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु में सदा.

शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2020

नवरात्रि 2020 - जानें घटस्थापना का मुहूर्त और नवरात्रि पूजा विधि

 



नवरात्रि का पर्व 17 अक्टूबर 2020 से आरंभ हो रहा है. पंचांग के अनुसार इस दिन आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि है. इस दिन चंद्रमा तुला राशि और सूर्य कन्या राशि में रहेगा. प्रतिपदा की तिथि को ही घटस्थापना की जाएगी. इसे कलश स्थापना भी कहा जाता है. मान्यता है कि नवरात्रि में घटस्थापना शुभ मुहूर्त में विधि पूर्वक करनी चाहिए. घटस्थापना का संबंध भगवान गणेश से है.


नवरात्रि में घटस्थापना का मुहूर्त
प्रतिपदा तिथि का आरंभ: 17 अक्टूबर को 01: 00 एएम
प्रतिपदा तिथि का समापन: 17 को 09:08 पीएम
17 अक्टूबर को घट स्थापना मुहूर्त का समय: प्रात:काल 06:27 बजे से 10:13 बजे तक


नवरात्रि में देवी पूजन
17 अक्टूबर: मां शैलपुत्री पूजा, घटस्थापना
18 अक्टूबर: मां ब्रह्मचारिणी पूजा
19 अक्टूबर: मां चंद्रघंटा पूजा
20 अक्टूबर: मां कुष्मांडा पूजा
21 अक्टूबर: मां स्कंदमाता पूजा
22 अक्टूबर: षष्ठी मां कात्यायनी पूजा
23 अक्टूबर: मां कालरात्रि पूजा
24 अक्टूबर: मां महागौरी दुर्गा पूजा
25 अक्टूबर: मां सिद्धिदात्री पूजा


नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री की होती है पूजा
शैलपुत्री देवी की पूजा नवरात्रि के पहले दिन करने का विधान है. शैलपुत्री मां पार्वती का एक रूप माना जाता है. ये हिमालय राज की पुत्री हैं और नंदी की सवारी करती हैं. मां शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल का फूल है. नवरात्रि के पहले दिन लाल रंग का विशेष महत्व बताया गया है. जो साहस, शक्ति और कर्म का प्रतीक है.


नवरात्रि पूजा विधि
नवरात्रि के व्रत और पूजा में विधि औश्र नियम का विशेष महत्व माना गया है. पूजा विधि के अनुसार प्रतिपदा तिथि को ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें. इसके बाद घर के ही किसी पवित्र स्थान पर मिट्टी से वेदी का निर्माण करें. इस वेदी में जौ और गेहूं दोनों को मिलाकर बोएं. फिर पृथ्वी का पूजन कर वहां किसी चांदी, तांबे या मिट्टी का कलश स्थापित करें. इसके बाद गणेश पूजन करें और गणेश आरती का पाठ करें.

मंगलवार, 11 अगस्त 2020

जन्माष्टमी 2020 : व्रत में न करें ये 6 काम, नहीं मिलता पूजा का फल





 जन्माष्टमी का पर्व हर सल भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस बार यह अष्टमी तिथ 11 अगस्त को सुबह 09:06 बजे शुरू हो रही है और 12 अगस्त को सुबह 11:16 बजे समाप्त हो रही है। यानी अष्टमी तिथि मंगलवार की सुबह से बुधवार को 11 बजे तक है। ऐसे में इस साल 11 और 12 अगस्त को दो दिन जन्माष्टमी का पर्व मनाया जा रहा है। कुछ लोग 11 अगस्त को व्रत कर रहे हैं तो कुछ 12 अगस्त को व्रत कर रहे हैं। लेकिन अष्टमी तिथि में रोहिण नक्षत्र नहीं है। लेकिन धर्माचार्यों के अनुसार, लोग 12 अगस्त को रात 12:05 बजे से 12:48 बजे की बीच शुभ मुहूर्त में जन्माष्टमी पूजा कर सकते हैं।

देशभर में कोरोना वायरस महामारी संकट को देखते हुए मथुरा के प्रमुख मंदिरों में जन्माष्टमी की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं लेकिन इस दौरान भक्तोंका प्रवेश वर्जित रहेगा। लोग अपने घरों से जन्माष्टमी उत्सव का लाइव प्रसारण देख सकेंगे।

हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, प्रत्येक धार्मिक उत्सव या व्रत के अपने कुछ नियम व मान्यताएं होती हैं। कहा जाता है कि इन मान्यताओं का पालन करने पर ही व्रत/पूजा का शुभ फल प्राप्त होता है। आगे जानिए जन्माष्टमी कौन से काम नहीं करना चाहिए।

 

जन्माष्टमी व्रत में न करें ये 6 काम
1- किसी का अनादर न करें
भगवान ने प्रत्येक इंसान को समान बनाया है इसलिए किसी का भी अमीर-गरीब के रूप में अनादर या अपमान न करें। लोगों से विनम्रता और सहृदयता के साथ व्यवहार करें। आज के दिन दूसरों के साथ भेदभाव करने से जन्माष्टमी का पुण्य नहीं मिलता।


2- तामसिक आहार न लें मान्यता है कि जिस घर में भगवान की पूजा की जाती हो या कोई व्रत रखता हो उस घर के सदस्यों को जन्माष्टमी के दिन लहसुन और प्याज जैसी तामसिक चीजों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इस दिन पूरी तरह से सात्विक आहार की ग्रहण करना चाहिए।

3- ब्रह्मचर्य का पालन करें मान्यता है कि जन्माष्टमी के दिन स्त्री-पुरुष को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। ऐसा न करने वालों को पाप लगता है।

4- गायों को न सताएं मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण को गौ अति प्रिय हैं। इस दिन गायों की पूजा और सेवा करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। किसी भी पशु को सताना नहीं चाहिए।

5- चावल या जौ का सेवन न करें। शास्त्रों के अनुसार, एकादशी और जन्माष्टमी के दिन चावल या जौ से बना भोजन नहीं खाना चाहिए। चावल को भगवान शिव का रूप भी माना गया है।

6- रात 12 से पहले न खालें व्रत पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जन्माष्टमी का व्रत करने वाले को भगवान श्रीकृष्ण के जन्म होने तक यानी रात 12 बजे तक ही व्रत का पालन करन चाहिए। इससे पहले अन्न का सेवन नहीं करना चाहिए। बीच में व्रत तोड़ने वालों को व्रत का फल नहीं मिलता।

शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

कब है रक्षाबंधन का त्योहार, जानिए तारीख, शुभ मुहूर्त और इसका महत्व




रक्षाबंधन का त्योहार अगले महीने 03 अगस्त को मनाया जाएगा. रक्षाबंधन हिन्दू कैलेंडर के अनुसार श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है. इसे आमतौर पर भाई-बहनों का पर्व मानते हैं लेकिन, अलग-अलग स्थानों एवं लोक परम्परा के अनुसार अलग-अलग रूप में भी रक्षाबंधन का पर्व मानया जाता है. रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के अटूट रिश्ते को दर्शाता है. रक्षाबंधन का त्योहार सदियों से चला आ रहा है. इसे भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक का पर्व कहा जाता है. रक्षाबंधन के दिन बहनें अपने भाई की कलाई में रक्षा सूत्र बांधती हैं. हिंदूओं के लिए इस त्योहार का विशेष महत्व होता है. आइए जानते हैं इस साल रक्षाबंधन का त्योहार कब मनाया जाएगा और इस पर्व का मुहूर्त क्या रहेगा...

रक्षाबंधन का त्योहार इस साल 03 अगस्त दिन सोमवार को मनाया जाएगा. यह त्योहार हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि के दिन मनाया जाता है. इस बार यह तिथि 03 अगस्त के दिन पड़ रही है.

रक्षाबंधन शुभ मुहूर्त 2020

रक्षाबंधन अनुष्ठान का समय- सुबह 09 बजकर 28 मिनट से रात 09 बजकर 14 मिनट तक
अपराह्न मुहूर्त- दोपहर 01 बजकर 46 मिनट से शाम 04 बजकर 26 मिनट तक
प्रदोष काल मुहूर्त- शाम 07 बजकर 06 मिनट से रात 09 बजकर 14
मिनट तक
पूर्णिमा तिथि आरंभ – 02 अगस्त की रात 09 बजकर 28 मिनट से प्रारंभ होगा
पूर्णिमा तिथि समाप्त- 03 अगस्त की रात 09 बजकर 27 मिनट पर

रक्षाबंधन का विशेष महत्व





रक्षाबंधन के दिन सुबह-सुबह उठकर स्नान करें और साफ-सुथरें कपड़े पहनें. इसके बाद घर की साफ-सफाई करें. चावल के आटे का चौक पूरकर मिट्टी के छोटे से घड़े की स्थापना करें. चावल, कच्चे सूत का कपड़ा, सरसों, रोली को एकसाथ मिलाएं. फिर पूजा की थाली तैयार कर दीप जलाएं. थाली में मिठाई रखें. इसके बाद भाई को पीढ़े पर बिठाएं. अगर पीढ़ा आम की लकड़ी का बना हो तो सर्वश्रेष्ठ है.
रक्षा सूत्र बांधते वक्त भाई को पूर्व दिशा की ओर बिठाएं. वहीं भाई को तिलक लगाते समय बहन का मुंह पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए. इसके बाद भाई के माथा पर टीका लगाकर दाहिने हाथ पर रक्षा सूत्र बांधें. राखी बांधने के बाद भाई की आरती उतारें फिर उसको मिठाई खिलाएं. अगर बहन बड़ी हो तो छोटे भाई को आशीर्वाद दें और छोटी हो तो बड़े भाई को प्रणाम करें.

रक्षाबंधन पर्व का धार्मिक महत्व

पौराणिक कथा के अनुसार, राजसूर्य यज्ञ के समय भगवान कृष्ण को द्रौपदी ने रक्षा सूत्र के रूप में अपने आंचल का टुकड़ा बांधा था. इसी के बाद से बहनों द्वारा भाई को राखी बांधने की परंपरा शुरू हो गई. रक्षाबंधन के दिन ब्राहमणों द्वारा अपने यजमानों को राखी बांधकर उनकी मंगलकामना की जाती है. इस दिन विद्या आरंभ करना भी शुभ माना जाता है.

मंगला गौरी व्रत उद्यापन विधि





मंगला गौरी व्रत उद्यापन विधि के बारे में जानने से आप इस व्रत का पूर्ण लाभ प्राप्त कर सकती है। मंगला गौरी का व्रत सावन सोमवार के अगले दिन मंगलवार को रखा जाता है। इसी प्रकार मंगला गौरी के अन्य व्रत भी सावन  के सभी मंगलवार को रखा जाएगा। शास्त्रों में मंगला गौरी के व्रत का महत्व बहुत अधिक बताया गया है। इस व्रत को करने से विवाह संबंधी सभी ग्रह बाधा समाप्त होती है। अगर कोई सुहागन स्त्री इस व्रत को करती है तो उसे वैवाहिक सुख, संतान सुख आदि सभी सुखों की प्राप्ति होती है। तो आइए जानते हैं मंगला गौरी व्रत की उद्यापन विधि के बारे में..




मंगला गौरी व्रत उद्यापन विधि 



1.सबसे पहले मंगला गौरी व्रत का उद्यापन करने वाली महिला या कन्या को सुबह जल्दी उठना चाहिए उसके बाद नहाकर लाल वस्त्र धारण करने चाहिए। 

2. इसके बाद पुराहित और सोलह सुहागन स्त्रियों को भोजन के लिए आमंत्रित करें। 

3. अगर कोई सुहागन महिला मंगला गौरी व्रत का उद्यापन कर रही है तो उसे अपने पति के साथ हवन करना चाहिए। 

4.इस व्रत की उद्यापन विधि अगर कोई कन्या पूरी कर रही है तो उसे अपने माता- पिता के साथ हवन करना चाहिए। 

5. इसके बाद मां गौरी का मंगला गौरी व्रत की तरह ही विधिवत पूजन करें और मां को लाल वस्त्र और श्रृंगार का सभी समान अर्पित करें।

6.मां मंगला गौरी के हवन में पूरे परिवार को सम्मिलित होना चाहिए। हवन के बाद माता मंगला गौरी की आरती उतारें। 
7.मां मंगला की आरती उतारने के बाद सभी में प्रसाद वितरण करें। 

8.सभी पूजा विधि संपन्न करने के बाद मां गौरी से किसी भी प्रकार की भूल के लिए श्रमा मांगे। 

9. इसके बाद पुरोहित जी और सभी सोलह स्त्रियों को भोजन कराएं। 

10. भोजन कराने के बाद सभी स्त्रियों को सुहाग की चीजें उपहार में दें।

मंगला गौरी व्रत कब किया जाता है 

मंगाल गौरी व्रत मां गौरा यानी मां पार्वती के लिए किया जाता है। शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती को श्रावण का महिना अत्याधिक प्रिय है। इसलिए मंगला गौरी का व्रत श्रावण मास के प्रत्येक मंगलवार को किया जाता है। मंगला गौरी के इस व्रत को करने से सुहागन स्त्रियों को वैवाहिक सुख और संतान संबंधी सभी परेशानियों से छुटाकरा मिलता है। इतना ही नहीं अगर कोई कुंवारी कन्या इस व्रत को करती है तो उसकी विवाह में आ रही सभी बाधांए भी समाप्त होती है। इसलिए यह व्रत अत्यंत लाभकारी और श्रेष्ठ कहा गया है।


गुरुवार, 9 जनवरी 2020

मकर संक्रांति पर यह है स्नान-दान का शुभ मुहूर्त, जानें खिचड़ी खाने का महत्व

मकर संक्रांति पर यह है स्नान-दान का शुभ मुहूर्त, जानें खिचड़ी खाने का महत्व



इस साल मकर संक्रांति खास संयोग बन रहा है, जिसकी वजह से यह और भी खास हो रही है। मकर संक्रांति के योग इस बार 2 दिन बन रहा है। इस बार मकर संक्रांति पर सर्वार्थसिद्धि योग बन रहा है। सूर्य साल 2020 के मकर संक्रांति की रात्रि (14 जनवरी 2020) 8:08 बजे मकर राशि में प्रवेश करेंगे, जो 15 जनवरी (मंगलवार) दोपहर 12 बजे तक तक मकर राशि में रहेंगे।

इसलिए 15 जनवरी (मंगलवार) 2020 को दोपहर 12 बजे से पूर्व ही स्नान-दान का शुभ मुहूर्त है। मकर संक्रांति पर स्नान और दान का विशेष योग 15 जनवरी 2020 (मंगलवार) को बन रहा है।

मकर संक्रांति पुण्य काल मुहूर्त:

पुण्य काल- 07:19 से 12:30

पुण्यकाल की कुल अवधि- 5 घंटे 11 मिनट 

संक्रांति आरंभ- 14 जनवरी 2020 (सोमवार) रात्रि 20:05 से

मकर संक्रांति महापुण्यकाल शुभ मुहूर्त- 07:19 से 09:02 

महापुण्य काल की कुल अवधि- 1 घंटा 43 मिनट 

खिचड़ी का महत्व 

मकर संक्रांति को खिचड़ी बनाने, खाने और दान करने खास होता है। इसी वजह से इसे कई जगहों पर खिचड़ी भी कहा जाता है। मान्यता है कि चावल को चंद्रमा का प्रतीक मानते हैं, काली उड़द की दाल को शनि का और हरी सब्जियां बुध का प्रतीक होती हैं। कहते हैं मकर संक्रांति पर खिचड़ी खाने से कुंडली में ग्रहों की स्थिती मजबूत होती है। इसलिए इस मौके पर चावल, काली दाल, नमक, हल्दी, मटर और सब्जियां डालकर खिचड़ी बनाई जाती है। 

कैसे शुरू हुई यह परंपरा

मकर संक्रांति को खिचड़ी बनने की परंपरा को शुरू करने वाले बाबा गोरखनाथ थे। मान्यता है कि खिलजी के आक्रमण के समय नाथ योगियों को खिलजी से संघर्ष के कारण भोजन बनाने का समय नहीं मिल पाता था। इस वजह से योगी अक्सर भूखे रह जाते थे और कमजोर हो रहे थे।

योगियों की बिगड़ती हालत को देख बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जी को एक साथ पकाने की सलाह दी। यह व्यंजन पौष्टिक होने के साथ-साथ स्वादिष्ट था। इससे शरीर को तुरंत उर्जा भी मिलती थी। नाथ योगियों को यह व्यंजन काफी पसंद आया। बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम खिचड़ी रखा।

झटपट तैयार होने वाली खिचड़ी से नाथ योगियों की भोजन की परेशानी का समाधान हो गया और इसके साथ ही वे खिलजी के आतंक को दूर करने में भी सफल हुए। खिलजी से मुक्ति मिलने के कारण गोरखपुर में मकर संक्रांति को विजय दर्शन पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन गोरखनाथ के मंदिर के पास खिचड़ी मेला आरंभ होता है। कई दिनों तक चलने वाले इस मेले में बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है और इसे भी प्रसाद रूप में वितरित किया जाता है।

मकर संक्रांति 2020 पर राशि के अनुसार करें दान-पुण्य मिलेगा 100 गुना फल

मकर संक्रांति 2020  पर राशि के अनुसार करें दान-पुण्य मिलेगा 100 गुना फल 



मेष- तिल-गुड़ का दान दें, उच्च पद की प्राप्ति होगी।
वृष- तिल डालकर अर्घ्य दें, बड़ी जिम्मेदारी मिलेगी।
मिथुन- जल में तिल, दूर्वा तथा पुष्प मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें, ऐश्वर्य प्राप्ति होगी।
कर्क- चावल-मिश्री-तिल का दान दें, कलह-संघर्ष, व्यवधानों पर विराम लगेगा।
सिंह- तिल, गुड़, गेहूं, सोना दान दें, नई उपलब्धि होगी।
कन्या- पुष्प डालकर सूर्य को अर्घ्य दें, शुभ समाचार मिलेगा।
तुला- सफेद चंदन, दुग्ध, चावल दान दें। शत्रु अनुकूल होंगे।
वृश्चिक- जल में कुमकुम, गुड़ दान दें, विदेशी कार्यों से लाभ, विदेश यात्रा होगी।
धनु- जल में हल्दी, केसर, पीले पुष्प तथा मिल मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें, चारों-ओर विजय होगी।
मकर- तिल मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें, अधिकार प्राप्ति होगी।
कुंभ- तेल-तिल का दान दें, विरोधी परास्त होंगे।
मीन- हल्दी, केसर, पीत पुष्प, तिल मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें, सरसों, केसर का दान दें, सम्मान, यश बढ़ेगा।

मकर संक्रांति 2020 को लेकर हैं कंफ्यूज तो जानें क्या है सही तिथि और पूजा का शुभ मुहूर्त

मकर संक्रांति को लेकर हैं कंफ्यूज तो जानें क्या है सही तिथि और पूजा का शुभ मुहूर्त

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मकर संक्रांति हिंदुओं के बड़े पर्वों में से एक है। इस साल मकर संक्रांति का त्योहार 15 जनवरी 2020 को मनाया जाएगा। मकर संक्रांति का जितना धार्मिक महत्व है उतना ही वैज्ञानिक महत्व भी बताया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर ही मकर संक्रांति योग बनता है। इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। इस साल 14 जनवरी रात 2.08 बजे सूर्य उत्तरायण होंगे यानी सूर्य अपनी चाल बदलकर धनु से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। आइए जानते हैं मकर संक्रांति पर क्या है पूजा का शुभ मुहूर्त।  

मकर संक्रांति का शुभ मुहूर्त-
पुण्यकाल: सुबह 07.19 से 12.31 बजे तक
महापुण्य काल - 07.19 से 09.03 बजे तक  
मकर संक्रांति के दिन दान-दक्षिणा का विशेष महत्व-
ज्योतिष विद्वानों का कहना है कि इस दिन  किया गया दान पुण्य और अनुष्ठान अभीष्ठ फल देने वाला होता है।

मोक्ष प्राप्ति के गंगा स्नान-
विद्वान पंडित राकेश झा शास्त्री का कहना है कि सनातन धर्म में मकर संक्रांति को मोक्ष की सीढ़ी बताया गया है। मान्यता है कि इसी तिथि पर भीष्म पितामह को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसके साथ ही सूर्य दक्षिणायण से उत्तरायण हो जाते हैं जिस कारण से खरमास समाप्त हो जाता है। प्रयाग में कल्पवास भी मकर संक्रांति से शुरू होता है। इस दिन को सुख और समृद्धि का दिन माना जाता है। गंगा स्नान को मोक्ष का रास्ता माना जाता है और इसी कारण से लोग इस तिथि पर गंगा स्नान के साथ दान करते हैं।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्य देव जब मकर राशि में आते हैं तो शनि की प्रिय वस्तुओं के दान से भक्तों पर सूर्य की कृपा बरसती है। इस कारण मकर संक्रांति के दिन तिल निर्मित वस्तुओं का दान शनिदेव की विशेष कृपा को घर परिवार में लाता है। आइए जानते हैं कि इस दिन राशि अनुसार किस चीज का दान करने से व्यक्ति को पुण्य फल की प्राप्ति के साथ उसका 100 गुना वापस मिलता है।

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2019

मेष राशिफल 2020 - स्वभाव, शिक्षा,नौकरी,प्रेम - विवाह,पारिवारिक जीवन,आर्थिक स्थिति,स्वास्थ भविष्यफल

मेष राशिफल 2020 - स्वभाव, शिक्षा,नौकरी,प्रेम - विवाह,पारिवारिक जीवन,आर्थिक स्थिति,स्वास्थ भविष्यफल




मेष राशि - गुण
मेष राशिफल – चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, आ
मेष राशि प्रतीक - मेढ़क जैसा
राशि स्वामी - मंगल, अग्नि तत्व
लकी नंबर – 6, 9
मेष राशि के अनुकूल ग्रह - सूर्य, वृहस्पति, चन्द्र।
मेष राशि के राशि रत्न- मूंगा रत्न।
मेष राशि के शुभ रुद्राक्ष - तीन मुखी।
मेष राशि के शुभ रंग - लाल, नारंगी और पीला रंग।
मेष राशि की मित्र-राशियाँ - सिंह, तुला और धनु राशि।
मेष राशि के सकारात्मक - साहसी, आत्मविश्वासी और ऊर्जावान।
मेष राशि के अनुकूल-देवता - शिवजी, भैरव जी, श्री हनुमान जी।
मेष राशि की शुभ दिशा - पूर्व दिशा.

मेष राशि स्वभाव

ज्योतिष में मेष राशि को अग्नि तत्व की राशि मानी जाती हैं.. इसलिए मेष राशि के लोगो में गजब की ऊर्जा, उत्साह और साहस होता है. इस राशि के लोग बहुत ही साहसी किस्म के होते हैं. परिस्थिति चाहे कितनी भी कठिन क्यों ना हो, ये लोग चुनौतियों का सामना करने से बिल्कुल घबराते नहीं हैं. अपने लक्ष्यों के प्रति हमेशा ईमानदार रहने वाले मेष राशि के जातक जब किसी काम को करने की ठान लेते है तो उसे पूरा करके ही रहते हैं। ये लोग दिल से बहुत सच्चे होते है. और बेवजह किसी पर भी गुस्सा नहीं होते. लेकिन अगर एक बार इन्हे किसी बात पर गुस्सा आ जाये तो ये लोग शांत होने में थोड़ा वक्त ले लेते है.  अपने करियर के मामले में ये लोग बहुत ही सतर्क रहते है. और अपनी कड़ी - मेहनत के बदौलत अच्छा मुकाम हासिल करने में सफल होते है. प्यार की बात करें तो ये लोग अपने पार्टनर को अपने जीवन में सबसे अधिक महत्ता और प्राथमिकता देते है। अतः ये लोग अपने प्रेमी या जीवनसाथी का अच्छा साथ देने वाले होते है.

मेष राशि - शिक्षा भविष्यफल 2020

राशिफल 2020 के अनुसार, मेष राशि के छात्रों के लिए यह साल मेहनत करने वाला रहेगा. छात्र इस समय जितनी कड़ी मेहनत करेंगे उसका उन्हें भरपूर लाभ मिलेगा . शिक्षा प्राप्त करने के इच्छुक छात्रों के लिए विदेश जाने का संयोग बन सकता है। प्रतियोगिताओं की तैयारी कर रहे स्टूडेंटन्स को इस दिशा में शुभ समाचार की प्रति हो सकती है. राशिफल 2020 के अनुसार छात्रों के लिए इस साल सबसे सुनहरा समय भी आने के योग है जिसकी आपने कल्पना भी नहीं की थी. इस दौरान यदि आप इस समय को पहचान कर इसका भरपूर लाभ ले सके तो मिटटी को सोना भी बना सकते है.कुल मिलाकर इस साल छात्रों को अपनी मेहनत का मनचाहा फल मिलेगा।

मेष राशि - नौकरी - व्यवसाय भविष्यफल

राशिफल 2020 के अनुसार नौकरी - व्यवसाय के लिहाज से ये साल आपके लिए अच्छा बीतने वाला है। भाग्य आपका साथ देगा। जिससे आपको इस साल आगे बढ़ने के अच्छे अवसर मिलते रहेंगे. ऐसे जातक जो नौकरी पेशा है आने वाले नए साल में उनके कुछ बड़े सपने आसानी से पूरे होने के योग बन सकते है.इस साल कार्य क्षेत्र में बदलाव की स्थिति बन सकती है. कार्यरत जातको को उच्च पदाधिकारियों का भरपूर सहयोग भी प्राप्त होगा। और वे लोग जो इस साल अपनी जॉब बदलना चाहते है उन्हें भी सफलता मिलेगी. राशिफल 2020 के अनुसार इस वर्ष आपको रुतबा और भरपूर शोहरत मिलेगी। कार्यक्षेत्र में उन्नति के अवसर प्राप्त हो सकते हैं, काम को लेकर कहीं लंबी यात्रा के लिए जाना भी पड़ सकता है। यह साल बिजनेस के प्रसार के लिए काफी उपयुक्त साबित होगा। कुल मिलाकर करियर के लिहाज से ये साल आपके लिए काफी अच्छा रहेगा।

मेष राशि - प्रेम - विवाह भविष्यफल 

राशिफल 2020 के अनुसार इस वर्ष आपका अपने सोलमेट के साथ काफी अच्छा तालमेल रहेगा। आपको अपने प्रेमी या जीवनसाथी के साथ वक़्त बिताने के बहुत से अवसर प्राप्त होंगें। यदि आप नए प्यार की तलाश में हैं तो साल के अंत में आपकी जिंदगी में नए प्यार का आगमन हो सकता है. लव कपल्स के यह साल बेहतरीन सालो में से एक रहने वाला है . साल के मध्य भाग में आप दोनों के बीच का रिश्ता और ज्यादा मजबूत बनेगा और आपका प्यार परवान पर होगा। इस वर्ष आप दोनों किसी रोमांटिक डेट का प्लान बना सकते है. यह रोमांटिक डेट यादगार साबित होगी. यदि आप अपने प्यार का इजहार किसी से करना चाहते हैं तो इसके लिए भी यह साल उत्तम सिद्ध होगा.  कुल मिलाकर यह साल प्रेम ओर वैवाहिक दृष्टिकोण से आपके लिए काफी अच्छा बीतेगा।

मेष राशि - पारिवारिक जीवन भविष्यफल

राशिफल 2020 के अनुसार यह साल पारिवारिक जीवन के लिहाज से अच्छा गुजरेगा. साल के मध्य भाग में परिवार में किसी मांगलिक कार्य के होने की संभावना बन सकती है। इस वर्ष अपने परिवार के लिए किसी सुखभोगी चीज को खरीद सकते हैं.  भविष्यफल 2020 के अनुसार साल के मध्य भाग में कोई कार्यक्रम हो सकता है जिससे घर में मेहमानो का आगमन रहेगा. ओर पुरे घर में खुशियों भरा वातावरण रहेगा. घर के सदस्यों के बीच की एकता मन को प्रसन्न करने वाली रहेगी.  घर परिवार में कुछ नए रिश्ते भी जुड़ सकते है.कुल मिलाकर इस पुरे साल घर में उमंग और खुशियां रहने के संकेत है।

मेष राशि - आर्थिक स्थिति भविष्यफल

मेष राशिफल 2020 के अनुसार इस नव वर्ष में मेष राशि के लोगो की आर्थिक स्थिति अच्छी रहेगी और आय के भी कई अच्छे स्रोत सामने आएंगे. इस साल आप धार्मिक कार्यों में पैसों का निवेश कर सकते हैं. साल के मध्य भाग में आप इनकम बढ़ाने के लिए कोई नई योजना बना सकते है. विशेष रूप से आर्थिक लाभ होने के संयोग बनेंगे. इस साल किसी भी कार्य में बड़ा निवेश समझदारी के साथ करें. कुल मिलाकर ये साल आर्थिक रूप से आपके लिए शुभ होगा।

मेष राशि - स्वास्थ भविष्यफल 

राशिफल 2020 के अनुसार स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से यह साल आपके लिए अच्छा रहेगा. साल के शुरूआती भाग में आपको अपनी फिटनेस पर ध्यान देने की जरूरत है। इस साल आप योग, ध्यान, व्यायाम आदि को अपनी दिनचर्या में जरूर शामिल करें. ऐसा करने से आप पुरे साल दुरुस्त रहेंगे.

मेष राशि महाउपाय :-

किसी भी शुभ काम के आरम्भ में अपने इष्ट देव का ध्यान करें. 
गाय को रोटी या चारा दे.
शनि मंदिर में सरसों के तेल का दीपक जलाने से आपकी तरक्की में आने वाली सभी बँधाये दूर हो सकती है

मेष राशि - बेस्ट लव मैच -

ज्योतिष अनुसार मेष राशि के लोगो का सबसे बेस्ट लव मैच मेष, वृश्चिक , तुला और धनु राशि के साथ माना गया है. अगर मेष राशि की इनके साथ जोड़ी बनती है तो इन जोड़ियों को बेस्ट लव मैच माना जाता है.

सामान्य लव मैच -

ज्योतिष अनुसार मेष राशि के लोगो का अच्छा लव मैच कर्क, सिंह , कुम्भ , कन्या, मीन और मिथुन राशि के साथ माना गया है. अगर मेष राशि की इन राशियों के साथ जोड़ी बनती है तो इनका रिश्ता बहुत ही शानदार रहता है और ये एक दूसरे को बहुत अच्छे से समझते है.

50 - 50 लव मैच -

मेष राशि के लिए वृषभ , कन्या , मकर राशि के लोगो के साथ प्रेम प्रसंग सफल होने की सम्भावनाये 50 - 50 रहती है. इन्हे अपने रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए अपनी आपसी समझ और बढ़िया तालमेल की जरूरत होती है.

मेष राशि - पसंद / नापसंद

पसंद Likes – आजादी, आरामदायक कपड़े, अच्छी नेतृव्य क्षमता, चुनौतियों का डटकर सामना करना, खेल मनोरंजन  आदि.

ना पसंद Unlikes- आलसी, काम में देरी, अनदेखा किया जाना, झूट बोलना और सुनना आदि.

मेष राशि - शक्तिया /कमजोरी

शक्तिया Strength - साहसी, दृण, विश्वासी, उत्साही, आशावादी, ईंमानदार, और भावुकता

कमजोरी Weakness - अधीर, मुड़ी, गुस्सैल स्वभाव.

गुरुवार, 10 अक्तूबर 2019

करवा चौथ 2019- इस करवा चौथ बन रहा है ये विशेष संयोग, जानें व्रत के नियम,कथा,पूजा विधि

करवा चौथ 2019- इस करवा चौथ बन रहा है ये विशेष संयोग, जानें व्रत के नियम,कथा,पूजा विधि 


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कार्तिक मास की चतुर्थी को मनाया जाता है करवा चौथ का त्योहार। इस साल यह त्योहार 17 अक्टूबर को है। इस बार करवा चौथ का महत्व इसलिए और बढ़ रहा है क्योंकि इस साल करवा चौथ पर एक विशेष संयोग बन रहा है। बताया जा रहा है कि यह संयोग 70 साल बाद बन रहा है। इस बार चतुर्थी तिथि 17 अक्टूबर को 6:48 पर चतुर्थी तिथि लग रही है। अगले दिन चतुर्थी तिथि सुबह 7:29 तक रहेगी।  विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए करती हैं। इस दिन व्रत में सुबह सरगी खाई जाती है। इस बार उपवास का समय 13 घंटे 56 मिनट का है। सुबह 6:21 से रात 8:18 तक। इसलिए सरगी सुबह  6:21 से पहले ही खा लें।
पूरे दिन निर्जला व्रत रख कर महिलाएं शाम को चांद को अर्घ्य देकर व्रत को तोड़ती हैं। इस बार चांद 8:18 पर निकलेगा। अगर आपव्रत की कहानी सुनना चाहती हैं और पूजा करना चाहती हैं तो शाम 5:50 से 7:06  तक कर सकती हैं। पूजा के लिए यह शुभ मुहूर्त है। कुल मिलाकर एक घंटे 15 मिनट का मुहूर्त है।

करवाचौथ शुभ मुहूर्त 2019 

शाम 5:50 से 7:06  
ये मुहूर्त एक घंटे 15 मिनट का है। 

सुबह 6:21 से रात 8:18 तक
उपवास का समय 13 घंटे 56 मिनट है। 
चांद निकलने का समय: 8:18 रात
इस बार रोहिणी नक्षत्र के साथ मंगल का योग होना अधिक मंगलकारी बना रहा है। यह योग बहुत ही मंगलकारी है और इस दिन व्रत करने से सुहागिनों को व्रत का फल मिलेगा। इस दिन चतुर्थी माता और गणेश जी की भी पूजा की जाती है।  
माना जाता है कि इस दिन यदि सुहागिन स्त्रियां व्रत रखें तो उनके पति की उम्र लंबी होती है और उनका गृहस्थ जीवन सुखमय होता है। वैसे तो पूरे देश में इस त्यौहार को बड़े हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता हैं लेकिन उत्तर भारत खासकर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश आदि में तो इस दिन अलग ही नजारा होता है। 
करवा चौथ का त्यौहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन विवाहित स्त्रियाँ अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखती है। साथ ही अच्छे वर की कामना से अविवाहिता स्त्रियों के करवा चौथ व्रत रखने की भी परम्परा है। यह पर्व पूरे उत्तर भारत में ज़ोर-शोर से मनाया जाता है।

करवा चौथ व्रत के नियम

1. यह व्रत सूर्योदय से पहले से शुरू कर चांद निकलने तक रखना चाहिए और चन्द्रमा के दर्शन के पश्चात ही इसको खोला जाता है।
2. शाम के समय चंद्रोदय से 1 घंटा पहले सम्पूर्ण शिव-परिवार (शिव जी, पार्वती जी, नंदी जी, गणेश जी और कार्तिकेय जी) की पूजा की जाती है।
3. पूजन के समय देव-प्रतिमा का मुख पश्चिम की तरफ़ होना चाहिए तथा स्त्री को पूर्व की तरफ़ मुख करके बैठना चाहिए।

करवा चौथ कथा

करवा चौथ व्रत कथा के अनुसार एक साहूकार के सात बेटे थे और करवा नाम की एक बेटी थी। एक बार करवा चौथ के दिन उनके घर में व्रत रखा गया। रात्रि को जब सब भोजन करने लगे तो करवा के भाइयों ने उससे भी भोजन करने का आग्रह किया। उसने यह कहकर मना कर दिया कि अभी चांद नहीं निकला है और वह चन्द्रमा को अर्घ्य देकर ही भोजन करेगी। अपनी सुबह से भूखी-प्यासी बहन की हालत भाइयों से नहीं देखी गयी। सबसे छोटा भाई एक दीपक दूर एक पीपल के पेड़ में प्रज्वलित कर आया और अपनी बहन से बोला - व्रत तोड़ लो; चांद निकल आया है। बहन को भाई की चतुराई समझ में नहीं आयी और उसने खाने का निवाला खा लिया। निवाला खाते ही उसे अपने पति की मृत्यु का समाचार मिला। शोकातुर होकर वह अपने पति के शव को लेकर एक वर्ष तक बैठी रही और उसके ऊपर उगने वाली घास को इकट्ठा करती रही। अगले साल कार्तिक कृष्ण चतुर्थी फिर से आने पर उसने पूरे विधि-विधान से करवा चौथ व्रत किया, जिसके फलस्वरूप उसका पति पुनः जीवित हो गया।

करवा चौथ व्रत की पूजा-विधि

1. सुबह सूर्योदय से पहले स्नान आदि करके पूजा घर की सफ़ाई करें। फिर सास द्वारा दिया हुआ भोजन करें और भगवान की पूजा करके निर्जला व्रत का संकल्प लें।
2. यह व्रत उनको संध्या में सूरज अस्त होने के बाद चन्द्रमा के दर्शन करके ही खोलना चाहिए और बीच में जल भी नहीं पीना चाहिए।
3. संध्या के समय एक मिट्टी की वेदी पर सभी देवताओं की स्थापना करें। इसमें 10 से 13 करवे (करवा चौथ के लिए ख़ास मिट्टी के कलश) रखें।
4. पूजन-सामग्री में धूप, दीप, चन्दन, रोली, सिन्दूर आदि थाली में रखें। दीपक में पर्याप्त मात्रा में घी रहना चाहिए, जिससे वह पूरे समय तक जलता रहे।
5. चन्द्रमा निकलने से लगभग एक घंटे पहले पूजा शुरू की जानी चाहिए। अच्छा हो कि परिवार की सभी महिलाएँ साथ पूजा करें।
6. पूजा के दौरान करवा चौथ कथा सुनें या सुनाएँ।
7. चन्द्र दर्शन छलनी के द्वारा किया जाना चाहिए और साथ ही दर्शन के समय अर्घ्य के साथ चन्द्रमा की पूजा करनी चाहिए।
8. चन्द्र-दर्शन के बाद बहू अपनी सास को थाली में सजाकर मिष्ठान, फल, मेवे, रूपये आदि देकर उनका आशीर्वाद ले और सास उसे अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दे।

करवा चौथ में सरगी

पंजाब में करवा चौथ का त्यौहार सरगी के साथ आरम्भ होता है। यह करवा चौथ के दिन सूर्योदय से पहले किया जाने वाला भोजन होता है। जो महिलाएँ इस दिन व्रत रखती हैं उनकी सास उनके लिए सरगी बनाती हैं। शाम को सभी महिलाएँ श्रृंगार करके एकत्रित होती हैं और फेरी की रस्म करती हैं। इस रस्म में महिलाएँ एक घेरा बनाकर बैठती हैं और पूजा की थाली एक दूसरे को देकर पूरे घेरे में घुमाती हैं। इस रस्म के दौरान एक बुज़ुर्ग महिला करवा चौथ की कथा गाती हैं। भारत के अन्य प्रदेश जैसे उत्तर प्रदेश और राजस्थान में गौर माता की पूजा की जाती है। गौर माता की पूजा के लिए प्रतिमा गाय के गोबर से बनाई जाती है।

अगर करवा चौथ से जुड़ा आपका कोई प्रश्न है या आप इस व्रत से जुड़ी कुछ और जानकारी चाहते हैं, तो कृपया नीचे टिप्पणी कीजिए।

vrataurtyohar.com की ओर से आपको करवा चौथ की हार्दिक शुभकामनाएँ!

शरद पूर्णिमा 2019 - शुभ मुहूर्त,महत्‍व,पूजा विधि,मान्‍यताएं और व्रत कथा

शरद पूर्णिमा 2019 - शुभ मुहूर्त,महत्‍व,पूजा विधि,मान्‍यताएं और व्रत कथा

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अश्विन मास के शुक्‍ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह हर साल अक्‍टूबर के महीने में आती है. इस बार शरद पूर्णिमा 13 अक्‍टूबर 2019 को है. 
शरद पूर्णिमा की तिथ‍ि और शुभ मुहूर्त 

शरद पूर्णिमा तिथि: रविवार, 13 अक्‍टूबर 2019
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 13 अक्‍टूबर 2019 की रात 12 बजकर 36 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्‍त: 14 अक्‍टूबर की रात 02 बजकर 38 मिनट तक
चंद्रोदय का समय: 13 अक्‍टूबर 2019 की शाम 05 बजकर 26 मिनट
शरद पूर्णिमा का महत्‍व

शरद पूर्णिमा को 'कोजागर पूर्णिमा' और 'रास पूर्णिमा' के नाम से भी जाना जाता है. इस व्रत को 'कौमुदी व्रत'  भी कहा जाता है. मान्‍यता है कि शरद पूर्णिमा का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. मान्‍यता है कि शरद पूर्णिमा का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. कहा जाता है कि जो विवाहित स्त्रियां इसका व्रत करती हैं उन्‍हें संतान की प्राप्‍ति होती है. जो माताएं इस व्रत को रखती हैं उनके बच्‍चे दीर्घायु होते हैं. वहीं, अगर कुंवारी कन्‍याएं यह व्रत रखें तो उन्‍हें मनवांछित पति मिलता है. शरद पूर्णिमा का चमकीला चांद और साफ आसमान मॉनसून के पूरी तरह चले जाने का प्रतीक है. मान्‍यता है कि इस दिन आसमान से अमृत बरसता है. माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा के प्रकाश में औषधिय गुण मौजूद रहते हैं जिनमें कई असाध्‍य रोगों को दूर करने की शक्ति होती है.
शरद पूर्णिमा की पूजा विधि 

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 शरद पूर्णिमा के दिन सुबह उठकर स्‍नान करने के बाद व्रत का संकल्‍प लें.
- घर के मंदिर में घी का दीपक जलाएं
- इसके बाद ईष्‍ट देवता की पूजा करें.
- फिर भगवान इंद्र और माता लक्ष्‍मी की पूजा की जाती है.
- अब धूप-बत्ती से आरती उतारें.
- संध्‍या के समय लक्ष्‍मी जी की पूजा करें और आरती उतारें.
- अब चंद्रमा को अर्घ्‍य देकर प्रसाद चढ़ाएं और आारती करें.
- अब उपवास खोल लें.
- रात 12 बजे के बाद अपने परिजनों में खीर का प्रसाद बांटें. 
चंद्रमा को अर्घ्‍य देते समय इस मंत्र का उच्‍चारण करें
ॐ चं चंद्रमस्यै नम:
दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव सम्भवम ।
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणं ।।
ॐ श्रां श्रीं
कुबेर को प्रसन्‍न करने का मंत्र
धन के देवता कुबेर को भगवान शिव का परम प्रिय सेवक माना जाता है. ऐसे में शरद पूर्णिमा की रात मंत्र साधना से उन्‍हें प्रसन्‍न करने का विधान है.
ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन धान्याधिपतये
धन धान्य समृद्धिं मे देहि दापय दापय स्वाहा।।
शरद पूर्णिमा के दिन खीर का विशेष महत्‍व है. मान्‍यता है कि इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं ये युक्‍त होकर रात 12 बजे धरती पर अमृत की वर्षा करता है. शरद पूर्णिमा के दिन श्रद्धा भाव से खीर बनाकर चांद की रोशनी में रखी जाती है और फिर उसका प्रसाद वितरण किया जाता है. इस दिन चंद्रोदय के समय आकाश के नीचे खीर बनाकर रखी जाती है. इस खीर को 12 बजे के बाद खाया जाता है.  
शरद पूर्णिमा से जुड़ी मान्‍यताएं

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 शरद पूर्णिम को 'कोजागर पूर्णिमा' कहा जाता है. मान्‍यता है कि इस दिन धन की देवी लक्ष्‍मी रात के समय आकाश में विचरण करते हुए कहती हैं, 'को जाग्रति'. संस्‍कृत में को जाग्रति का मतलब है कि 'कौन जगा हुआ है?' कहा जाता है कि जो भी व्‍यक्ति शरद पूर्णिमा के दिन रात में जगा होता है मां लक्ष्‍मी उन्‍हें उपहार देती हैं.
- श्रीमद्भगवद्गीता के मुताबिक शरद पूर्णिमा के दिन भगवान कृष्‍ण ने ऐसी बांसुरी बजाई कि उसकी जादुई ध्‍वनि से सम्‍मोहित होकर वृंदावन की गोपियां उनकी ओर खिंची चली आईं. ऐसा माना जाता है कि कृष्‍ण ने उस रात हर गोपी के लिए एक कृष्‍ण बनाया. पूरी रात कृष्‍ण गोपियों के साथ नाचते रहे, जिसे 'महारास' कहा जाता है. मान्‍यता है कि कृष्‍ण ने अपनी शक्ति के बल पर उस रात को भगवान ब्रह्म की एक रात जितना लंबा कर दिया. ब्रह्मा की एक रात का मतलब मनुष्‍य की करोड़ों रातों के बराबर होता है.
- माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन ही मां लक्ष्‍मी का जन्‍म हुआ था. इस वजह से देश के कई हिस्‍सों में इस दिन मां लक्ष्‍मी की पूजा की जाती है, जिसे 'कोजागरी लक्ष्‍मी पूजा' के नाम से जाना जाता है.
- ओड‍िशा में शरद पूर्णिमा को 'कुमार पूर्णिमा' कहते हैं. इस दिन कुंवारी लड़कियां सुयोग्‍य वर के लिए भगवान कार्तिकेय की पूजा करती हैं. लड़कियां सुबह उठकर स्‍नान करने के बाद सूर्य को भोग लगाती हैं और दिन भर व्रत रखती हैं. शाम के समय चंद्रमा की पूजा करने के बाद अपना व्रत खोलती हैं. 
शरद पूर्णिमा व्रत कथा 
पौराणिक मान्‍यता के अनुसार एक साहुकार की दो बेटियां थीं. वैसे तो दोनों बेटियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं, लेकिन छोटी बेटी व्रत अधूरा करती थी. इसका परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी. उसने पंडितों से इसका कारण पूछा तो उन्‍होंने बताया, ''तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थीं, जिसके कारण तुम्‍हारी संतानें पैदा होते ही मर जाती हैं. पूर्णिमा का व्रत विधिपूर्वक करने से तुम्‍हारी संतानें जीवित रह सकती हैं.'' 
उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया. बाद में उसे एक लड़का पैदा हुआ, जो कुछ दिनों बाद ही मर गया. उसने लड़के को एक पीढ़े पर लेटा कर ऊपर से कपड़ा ढक दिया. फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पीढ़ा दे दिया. बड़ी बहन जब उस पर बैठने लगी तो उसका घाघरा बच्चे का छू गया. बच्चा घाघरा छूते ही रोने लगा. तब बड़ी बहन ने कहा,  "तुम मुझे कलंक लगाना चाहती थी. मेरे बैठने से यह मर जाता." तब छोटी बहन बोली, "यह तो पहले से मरा हुआ था. तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है. तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है."
उसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया.

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